तुलना से आहत सब्जीमंडी (Tulna se aahat Sabzi Mandi)


करेले, टमाटर, खीरा आदि की सूची लेकर मैं सब्जी मंडी गया था। पता चला, सब्जी वाले इन दिनों नाराज हैं, अच्छे-खासे नाराज हैं। आखिर सब्जीमंडी की अपनी गरिमा है। ऐसे में नगर पालिकाओं की कार्यप्रणाली में थोडा सा बदलाव लाकर यह दावा करना कि अब नगरपालिका की बैठकों का वातावरण सब्जीमंडी जैसा नहीं रहेगा- दिल पर चोट कर गया।


सारे के सारे सब्जीवाले आहत हैं। अपमानित महसूस कर रहे हैं। नगरपालिका से की गई तुलना से चोट उन्हें भी लगी है जो सब्जीमंडी से बाहर सब्जी बेचते हैं। इत्तफाक से मैं जिस दुकान से सब्जी खरीद रहा था, वह मंडी के प्रवक्ता की दुकान थी और काफी सारे लोग वहाँ जमा थे। मुझे पत्रकार के रूप में पहचानते हुए उसने अपनी लौकी और इन दिन बहार पर चल रहे कद्दू और गोभी की कसम उठाते हुए तर्क देने शुरू किए, कौन सी समानता है साहब, जो नगर पालिका से हमारी तुलना कर दी उन्होंने? यही देखिए ना, हमारे यहाँ जो सब्जी बहार पर होती है, उसके भाव कम हो जाते हैं, लेकिन वहाँ जिस पार्टी की बहार आ जाती है, उसी के भाव बढ जाते हैं। जो भी नेता बहार पर होता है, वही अपने भाव बढा लेता है। करेले तोलते हुए उसने कहा, कभी ऐसा हुआ कि हम आपसे सब्जी के पैसे तो ले लें और खाली थैली पकडा दें? मगर वे, महीने भर पानी न देकर नल का पूरा बिल भेजने में कोई शरम नहीं करते। क्या आपने कभी हमें उनकी तरह झगडते देखा है? क्या हम वैसी गालियां देते हैं? हम जरा सा कम तोल दें, ज्यादा भाव बोल दें तो ग्राहक सौ बातें सुनाता है, माल छोड कर चला जाता है। पर उधर, बढ-चढकर ही बोला जाता है और काम के नाम पर सिफर। उसने टमाटर तोल कर थैली में डाले और कहा, यहाँ सैंकडों लोगों की रोजी-रोटी सुबह-सुबह सब्जी की खुली नीलामी के कारण चलती है। सारा काम केवल जबान के भरोसे पूरी ईमानदारी से चलता है। और वहाँ अपने वाले का पूरी बेईमानी से भरा टेण्डर पास करवाने के लिए क्या-क्या खटकर्म नहीं किए जाते। भरपूर कमीशन तय करने के बाद भी ठेकेदार से इतनी बेजा मांगें की जाती हैं कि भला आदमी काम छोड कर भाग जाए। तराजू में भरा खीरा मेरे झोले में डालते हुए उन्होंने कहा, पालिका वालों की नेतागिरी से शहर भर के लोगों के साथ-साथ हम सब्जी वाले भी कितने परेशान हैं, हम ही जानते हैं। मगर क्या कभी आपने सुना कि किसी पार्षद या उसके किसी चमचे को किसी सब्जी वाले से परेशानी हुई। घोषणा तो यह करनी थी कि नए नियमों के अंतर्गत अब परिषद का कामकाज बिलकुल सब्जीमंडी की तर्ज पर शालीनता और ईमानदारी से हुआ करेगा। सारे प्रकरणों को, समस्याओं को ताजा फल-सब्जी की तरह प्राथमिकता के साथ निपटाया जाएगा। फाइल पेंडिंग रखने वाले को वैसे ही दंडित किया जाएगा, जैसे बासी-सडी सब्जी बेचने वाले को किया जाता है। मगर कुछ नहीं, मुंह खोला और बोल दिया, सब्जी मंडी जैसा वातावरण नहीं रहेगा। पहले हमारे जैसा वातावरण तो बना लें, फिर कहें..।
अगर मैं अपना झोला लेकर उठ न खडा होता तो नाराजी का उनका क्रम और मंडी के साथ पालिका की अतुलनीयता के तर्क काफी देर चलते रहते। चलते-चलते उन्हें सांत्वना देने के लिए कुछ कहना जरूरी था, इसलिए मैंने कहा, कहने दीजिए, क्या फर्क पडता है। आपकी सब्जियों के भाव पर कोई असर नहीं आएगा।
असर क्यों नहीं आएगा। पत्रकार होकर आप ऐसी नादानी की बात कर रहे हैं। साहब, ये प्रचार का जमाना है। पुराने ग्राहकों के बल पर कोई मंडी फल-फूल नहीं सकती। नए ग्राहकों का आना जरूरी है। लाजवाब सवाल था। मेरे पास उनके तर्को का तो जैसा-तैसा उत्तर हो भी सकता था, लेकिन उनकी नाराजगी का कोई समाधान नहीं था। इसलिए खींसे निपोरता हुआ, झोला उठाए, यह सोचता वापस चला आया कि घर पहुँच कर पहली फुरसत में उसे आगाह करुंगा, जिसने नगर पालिका के बेहूदे व्यवहार की तुलना सब्जीमंडी से कर डाली, भाई, अभी कुछ दिन उधर जाओ तो संभल कर जाना।
- रोमेश जोशी

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