टिटहरी और उसका आसमान (Titaharee aur Uskaa Aasmaan)- Vyangy


व्यंग्य                                                                टिटहरी और उसका आसमान
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टिटहरी आसमान की ओर पैर करके लेटी है। जनता या पाठकों से उसका दावा है, तीन जिम्मेदारियाँ निभाने का। पहली, पाठकों को शिक्षित करना, दूसरी, सामाजिक सरोकार और तीसरी सूचना रंजन यानी इन्फोटेन्मेंण्ट। लेकिन अभी क्या है कि ये जो ऊपर आसमान है ना, ये नीचे टपकने वाला है। इसलिए चिडि़या ने अपने दोनों पैर ऊपर कर लिए हैं। लेटी हुई चिडि़या पाठकों को आश्वस्त कर रही है, ‘‘आप चिन्ता न करें, ये मेरी पर्सनल प्रॉब्लम है, आसमान गिरेगा तो मैं सम्हाल लूँगी।’’

लोग या पाठक उसकी बात पर भरोसा करते भी हैं। तो चिडि़या लेटी है, कुछ देर बाद उद्योगपति आकर बोलता है, ‘‘मैडम, ध्यान रखना, आपका ये आसमान हमारी इण्डस्ट्री पर न गिरे, बदले में आपके दोनों पैरों के बीच वह जो बादलवाला टुकड़ा है, इसमें से बीस-तीन की जगह हमारे एड के लिए बुक कर लीजिए।’’

चिडि़या बुक कर लेती है। पेट का सवाल है। माफिया हेड आता है। कहता है, ‘‘अच्छा काम कर रही हैं आप। बस, ये आसमान हम पर न गिरे, ध्यान रखना। भले हमारा नाम मत छापना, किसी के सामने स्वीकार मत करना कि आप हमसे मदद लेती हैं। पर ये थोड़े से पत्रम-पुष्पम हैं, विथ बेस्ट कॉम्प्लीमेंट सम्हाल लीजिए इसे।’’

फिर नेता आता है, फिर वही बातें, ‘‘आसमान जब गिरे तो हमारा ध्यान रखना। खास तौर से चुनाव में हमारे समर्थन की सशुल्क-खबरों से इस आसमान को ढाँके रखना। देखना हाँ।’’

ऐसे ही किसी समय सरकार भी आसमान की ओर पैर उठाए चिडि़या के पास चली आती है। शर्त वही है, ‘‘थोड़ा बहुत नाटक भले ही करो, पर हमारे मुख्यमन्त्री, हमारे मन्त्रियों को आसमान में प्रोजेक्ट करती रहो। ध्यान रखना, ये यहाँ से वहाँ तक का आसमान हमने बुक किया है, यहाँ नीचे हमारा स्क्रोल चलना चाहिए। इसी की आड़ में हमारी लापरवाही, हमारे काण्ड दबाती रहो।’’

सुबह होती है। पाठक सन्तुष्ट है, टिटहरी ने आसमान को गिरने से रोक लिया। पर कुछ समय बाद जनता महसूस करती है, ये चिडि़या तो आसमान की स्पेस-बुकिंग में ही व्यस्त है। ये चिडि़या जिस आसमान को गिरने से रोकने का दावा कर रही है, ये तो खुद उसी आसमान का हिस्सा बन चुकी है। अपने आसपास माफिया टाइप जो भी कुछ है, इस चिडि़या की उससे हिस्सेदारी है। शहर में दवा माफिया, अस्पताल माफिया है, चिडि़या का उसमें हिस्सा है, भू-माफिया है, चिडि़या का हिस्सा है, खनन माफिया है, चिडि़या का हिस्सा है। शराब माफिया है, चिडि़या का हिस्सा है। धार्मिक माफिया है, तो चिडि़या का उसमें भी हिस्सा है। वो तो गनीमत है कि बलात्कार, डकैती, लूट, हत्या करनेवालों का इसे पहले से पता नहीं होता, अगर होता होगा, तो निश्चित मानिए, इस चिडि़या की उनसे हिस्सेदारी होती। 

एक समय था, सरकार इस चिडि़या के जरा से टिटियाने पर चमक जाती थी, अपने गलत फैसले वापस लेती थी। अब इसके टिटियाने पर थोड़ा सा चुग्गा डाल देती है। मुस्कुराकर कहती है, ‘‘पिंजरे में बन्द टिटहरी चहको। अच्छा लगता है, जब तुम हमारे लिए गाली गाती हो। तुम्हारे इस गीत से लोकतन्त्र की रक्षा जैसा कुछ होता है। शाब्बाश!’’

आज सरकार को, नेता को, माफिया-गुण्डों को, इस आसमान पैरों पर उठा सकने वाली टिटहरी का कितना डर है, आप-हम सब जानते हैं, लेकिन असली डर तो यह है कि जिस दिन पाठक इसकी असलीयत जान लेगा, तो क्या होगा? असल में चिडि़या को असली खतरा आसमान से नहीं, उन बड़ी बिल्लियों से है, जो उसकी ओर झपटने की तैयारी कर रही हैं। लेकिन टिटहरी बेखबर है। मेरा जुड़ाव इस टिटहरी से पिछले 46 साल से है, इसलिए प्रार्थना कर रहा हूँ, ‘‘ऐ टिटहरी, नाटक करना बन्द कर। सम्हाल खुद को, नहीं तो . . ।’’

नहीं तो, हम देखेंगे कि बिल्ली टिटहरी को पूरा निगल जाएगी। फिर जमीन पर यों चारों पैर ऊपर करके लेट जाएगी और कहेगी, ‘‘पाठकों, वो जो टिटहरी थी, वो अब मुझमें समाहित है, लेकिन आप लोग निश्चिन्त रहें, आसमान गिरेगा, तो मैं सम्हाल लूँगी।’’रोमेश जोशी
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