डॉन का नया चेहरा! (Don kaa Naya Chehra)

एक तो शायद मेरा नाम कुछ बेहद भ्रष्ट और धनवान लोगों जैसा, ऊपर से मेरा आकर्षक मोबाइल नंबर, देखते ही लोगों को लगता है कि साले ने बहुत माल कमाया होगा। इसी वजह से माफिया डॉन गलतफहमी का शिकार हुआ। हेलोके बाद जैसे ही उसने अपना नाम बताया, मेरा कांपना स्वाभाविक था। यकीन कीजिए, घृणा और नाराजगी के बावजूद सहज शिष्टाचार की आदतवश मेरे मुंह से निकल गया, ‘कहिए, क्या सेवा कर सकता हूं आपकी?’
जैसे ही उसने खोका भेजने की बात की, कायदे से मुझे ठहाका लगाना था और मेरी इज्जत बढ़ाने के लिए शुक्रिया अदा करना था। लेकिन मेरी घबराहट और बढ़ गई गिड़गिड़ाते हुए जैसे-तैसे मैंने कहा—’देखिए डॉनश्री, आपके नेटवर्क ने गलत जानकारी दी है। मैं अदना-सा लेखक, रचनाओं के पारिश्रमिक से काम चलाता हूं। हालत यह है कि कुछ बड़े अखबार पारिश्रमिक नहीं देते, फिर भी मैं उन्हें इस आशा में रचना भेजता रहता हूं कि किसी दिन तो संपादक का दिल पसीजेगा।
लगा कि डॉन का नेटवर्क इन दिनों कमजोर हो गया है और जब वह खोके से उतरकर पेटी पर आ गया तो यह भी समझ में आया कि उसकी हालत कितनी दयनीय है। मैंने उसे समझाया, ‘सर, आप पेटी की बात कर रहे हैं और मेरी हालत यह है कि कहीं रचना-पाठ का बुलावा आता है तो मेरे पास वहां जाने के लिए अच्छा झोला तक नहीं होता।
शायद मेरी गिड़गिड़ाहट का असर हुआ और कुछ देर बाद बात करने की धमकी के साथ फोन बंद हो गया। करीब बीस मिनट बाद फोन आया। डॉन का बड़प्पन देखिए, उसने स्वीकार किया कि उसकी मांग गलत थी। अपनी हमेशा की आदत के कारण वह ऐसी मांग कर गया। असल में कुछ दूसरे ही काम से उसने मुझे फोन किया था। मैंने तुरंत कहा,’पैसे के अलावा आप जो भी आदेश दें, स्वीकार है।
लेकिन राहत महसूस होते ही मेरे अंदर का पत्रकार खिल उठा। इस दुनिया में कितने पत्रकार हैं, जिन्हें डॉन का इंटरव्यूह लेने का मौका मिले। तरसते रहते हैं। मैंने मौके का फायदा लेकर तुरंत कहा, ‘भाई, एक सवाल पूछना चाहता हूं, प्लीज।
पूछो, क्या पूछना है?’ डॉन का लहजा फिर से सख्त होने लगा था। मैंने पूछा, ‘भाई, पिछले कई दिनों से देख रहा हूं, भारत के खिलाफ आपनेकोई कार्रवाई की हो, ऐसी खबर पढऩे को नहीं मिली। कोई बड़ी तैयारी कर रहे हैं क्या?’
नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। कुछ पारिवारिक तकलीफें थीं और इधर यूरोप की ओर ज्यादा ध्यान देना पड़ रहा है।डॉन का संक्षिप्त उत्तर था। मैंने कुरेदा, ‘फिर भी, कुछ करने जा रहे हैं क्या?’
सच बताऊं, मुझे अब लगता ही नहीं कि भारत की गत बिगाडऩे के लिए मुझे कुछ करने की जरूरत है, बस, छोटी-मोटी वसूली चलती रहती है।डॉन के स्वर की उदासीनता पर मैंने आश्चर्य से पूछा, ‘क्यों, ऐसी क्या बात हो गई। अब तो हम और ज्यादा समृद्ध होते जा रहे हैं।
वो तो है, मगर जब तुम्हारे अपने लोग ही हजारों-लाखों करोड़ का चूना लगा रहे हैं। रोजाना इतने बड़े घोटाले हो रहे हैं कि पाकिस्तान का साल भर का बजट बन जाए, तो मुझे नहीं लगता कि मुझे कुछ करने की जरूरत है। ये समझ लो कि मैंने अपने मिशन की उनको आउटसोर्सिंग कर दी है।डॉन का कथन पूरा होते ही मुझे अगला सवाल करना था, पर कोई सवाल ही नहीं सूझा। डॉन ने कुछ क्षण बाद फोन करने का कारण बताया, ‘मैंने सुना है, तुमने भारतीय नेताओं के चेहरों का गहरा अध्ययन किया है। वो क्या है कि इन दिनों मैं एक बार फिर चेहरे की प्लास्टिक सर्जरी करवा रहा हूं। मैं किसी नेता जैसा चेहरा बनवाना चाहता हूं। जरा सोचकर बताओ, तुम्हारे किस नेता का चेहरा मुझ पर अच्छा सूट करेगा?’
एक से एक भारी भारतीय नेताओं में से माफिया डॉन के लिए किसी एक चेहरे का सुझाव देना कितना कठिन है, आप समझ सकते हैं। क्या जवाब दूं उसे?’ मैंने सात दिन का समय मांगा है। मगर तय नहीं कर पा रहा हूं कि किसका नाम दूं। अपने आसपास के नेताओं में से कौन-सा ऐसा चेहरा है, जो डॉन पर सूट करेगा बल्कि कौन-सा नहीं सूट करेगा? इस परेशानी में आप लोगों में से कोई मेरी मदद करेगा क्या? - रोमेश जोशी

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