"क्लिपिंग देखते मन्त्री"- Clipping Dekhte Mantri


‘‘ब्लू फिल्म से डर नहीं लगता साहेब, मोबाइल से लगता है।’’ कर्नाटक के मन्त्री जरूर अब यही कह रहे होंगे। घर बैठा दिए गए तीनों मन्त्री शायद प्रियजनों के फोन सुनते हुए भी आसपास देख लेते होंगे कि कोई वीडियो तो नहीं उतार रहा। लेकिन किसी नेता को पद से हटाने का यह पहला मामला है, जिसकी सनसनी, जिसका मजा दो दिनों में खतम हो गया। पहले ऐसा कभी नहीं हुआ, जब भी कोई नेता रंगे हाथों धरा जाता, उसका पहला बयान होता, ‘‘ मुझे फंसाया गया है।’’

यहाँ फँसायाशब्द का उच्चारण वैसा ही होता, जैसे ट्रफिक में फंस जाने पर किया जाता है। स्टिंग ऑपरेशन में लाखों की रिश्वत लेते पकड़े गए नेताओं के प्रकरण याद कर लीजिए, कितनी लम्बी राजनीतिक कसरत की गई उन्हें हटाने से पहले। बयान पर बयान आते लेकिन फँसायमान नेता के बयान का यही अर्थ जनता लगाती कि अगर फँसता नहीं तो यही सिलसिला आगे भी जारी रहता, ‘‘ चलो अच्छा हुआ, फँस गया। कुछ दिनों के लिए यह क्रम रुक जाएगा। ’’
हमारे यहाँ किसी काण्ड में फँसे नेता को बचाने के लिए राजनीतिक बेशर्मी का एक प्रोटोकोल एक स्थापित परम्परा है, लेकिन सदन में अश्लील फिल्म देखने के मामले में उसे पूरी तरह भुला दिया गया। फँसाए जाने का बयान नहीं आया, चलो कोई बात नहीं, यह भी नहीं कहा गया कि जो बीडियो शूट हुआ, उससे छेड़छाड़ की गई है। बचाव का कोई प्रयास नहीं। अपने येदियुरप्पा को हटाए जाने की जब स्थिति बनी, तब तो समर्थकों से पूरी 45 बसें जलवा दी गई थीं। उसी कर्नाटक में तीन मन्त्री नप गए और पाँच बसों पर भी आँच नहीं आई। हद है। इससे ज्यादा सनसनी तो अश्लील फिल्म देखने पर मन्त्रियों ने महसूस की होगी।
आम आदमी क्या अर्थ लगाए इसका? अब तक यह भी तो स्पष्ट नहीं है कि मन्त्रियों से इस्तीफे लेने का असली कारण क्या है? उन्हें अश्लील फिल्म देखने के कारण हटाया, विधान सभा में अश्लील फिल्म देखने पर हटाया या विधान सभा में मोबाइल पर अकेले-अकेले फिल्म देखने के आरोप में हटाया गया है? जानते हैं, मन्त्री बेहद सार्वजनिक व्यक्ति होता है। टॉयलेट तक में उसकी बैठके चलती रहती हैं। विधानसभा के अलावा उसे फिल्म देखने जैसे कामों के लिए एकान्त मिलता कहाँ है? ऐसे में अगर विधान सभा में फिल्म देखने पर कदम उठा है, तो स्पष्ट किया जाना चाहिए कि मन्त्री फिल्म कहाँ देखें? और धीरे से यह भी बता दें कि अश्लील फिल्म कहाँ देखें?
पार्टी की ओर से भी सनसनी बढ़ाने के लिए कोई काम नहीं किया गया। अश्लील फिल्म देखने पर क्या अपना आदमी इतना पराया हो जाता है? कम से कम इतना तो करते कि सारे मन्त्रियों और नेताओं के नाम चेतावनी जारी कर देते कि विधान सभा में या और किसी जगह अश्लील फिल्म देखें, तो खुद भी और अपने सिक्यूरिटी वालों से भी पक्की जाँच करवा लें कि कोई वीडियोग्राफी तो नहीं हो रही। इतना तो बता ही देते कि आगे से अगर विधान सभा में अश्लील फिल्म देखने का मौका मिल जाए, तो जनप्रतिनिधिगण मोबाइल को किस प्रकार पकड़ें, कहाँ रखें कि केमेरे की नजर से बचें रहें। कुल मिलाकर पार्टी ने ऐसा व्यवहार किया है जैसे मन्त्री अपनी पार्टी के नहीं, जैसे अश्लील फिल्म देखना भ्रष्टाचार ज्यादा गम्भीर अपराध हो।
और उस आदमी का क्या जिसने मन्त्रियों को कुर्सी से उतारने वाला वीडियो उतारा? सुना है, किसी ने दर्शक दीर्घा से यह दृश्य अपने मोबाइल पर शूट किया। पर उसके बारे में कोई कुछ बोल ही नहीं रहा है। जल्दी से उस पर कार्रवाई की जानी चाहिए। ऐसे हर कोई विधानसभा में नेताओं की हरकतें शूट करने लगा तो कल को हमारे नेताओं और सदन की क्या इज्जत रह जाएगी? या तो उस व्यक्ति पर कार्रवाई करते हुए आगे से दर्शक दीर्घा में मोबाइल ले जाने पर रोक लगाई जाए या फिर उसका सम्मान किया जाए। अगर समय रहते उस आदमी पर कार्रवाई नहीं हुई तो देखना, विपक्षी दल मौका भुनाकर उसका सम्मान न कर डालें।
और अन्त में, बहुत से नेताओं की ओर से एक जानकारी चाहता हूँ, ‘‘ भाई, ये मोबाइल पर अश्लील फिल्में देखने के लिए क्या करना पड़ता है? कौन से बटन दबाने पड़ते हैं? क्या कोई खास किसम का मोबाइल या कनेक्शन लेना पड़ता है? ’’
कौन बताएगा? तीनों मन्त्रियों से पूछने में तो संकोच हो रहा है।

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