ईमानदार आदमी की खोज! (Imaandaar aadmee ki Khoj)


इसे कहते हैं अव्यवस्था की पराकाष्ठा, उधर दिल्ली में सरकार को ईमानदार आदमी नहीं मिल रहे हैं और इधर मैं जाने कब से खाली बैठा हूं। सच, सतर्कता आयुक्त  पद पर थामस की नियुक्ति  पर जैसे ही सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने ईमानदार आदमी न मिलने की मजबूरी जताते हुए अपना दुखड़ा रोया, मुझे लगा, यही समय है, जब मुझे अपनी सारी अकड़ को भुलाकर सरकार के सामने पेश हो जाना चाहिए। लेकिन फिर लगा कि सरकार या तो मेरे प्रस्ताव को मजाक में उड़ा देगी या ठण्डे बस्ते में डाल देगी। फिर भी मुझे सरकार की इस मजबूरी पर दया आ रही है, लग रहा है कि ईमानदार आदमी तलाशने में मुझे सरकार की जो भी मदद करते बने, करनी चाहिए।

सरकार के सामने ऐसी मजबूरी पहली बार आई हो ऐसा नहीं है। ईमानदार आदमी की खोज का सिलसिला सदियों से चला आ रहा है। हर राज्य में मंत्री या प्रधानमंत्री के मारे जाने या भ्रष्ट घोषित हो जाने पर यह समस्या खड़ी होती रही है। मगर कुछ पुराने सूत्र थे, जिनके द्वारा मंत्री या जो भी पद रहा हो उसके लिए ईमानदार आदमी की खोज कर ली जाती थी। उसी से जुड़ी एक बोध कथा प्रस्तुत करने की अनुमति चाहता हूं।
एक राजा का मंत्री एकाएक मर गया। मंत्री का कोई बेटा नहीं था, अन्यथा राजा उसे अनुकम्पा नियुक्ति देकर न्यायप्रियता का परिचय दे देता। अस्तु, निपूते मंत्री के मरने पर राजा परेशान। खाली जगह कैसे भरें? मंत्रीपद पर किस ईमानदार को बैठाएं? कुछेक इंटरव्यू लिए भी, पर सब फेल। उसी समय एक पहुंचा हुआ साधु राज्य में आया। जैसी कि परम्परा थी, राजा ने अपनी समस्या उस साधु को बताई। उसने कहा, ‘हे साधु! मेरे राज्य में बेईमान भरे पड़े हैं, हालत इतनी बुरी है कि मंत्री पद के लिए भी ईमानदार आदमी नहीं मिल रहा। क्या करूं?’
कायदे से उस साधु को राज्य के लोगों को बेईमान से ईमानदार बनाने के लिए कानूनों को कठोरता से लागू करने का उपदेश देना था। लेकिन उसे मालूम था कि यह जो राजा है, यह कितना कमजोर और सुस्त किस्म का है। इसलिए साधु ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘राजन, इस धरती पर ईमानदार आदमी की कभी कमी नहीं होती, किन्तु वे सब उन कामों में लगे होते हैं, जहां ईमानदारी की जरूरत होती है। फिर भी अगर तुम्हारे राज्य में बेईमान भरे पड़े हैं तो ऐसा करो, उनमें से जो सबसे बेईमान माना जाता हो, उस व्यक्ति को यहां बुलवाओ।
इत्तफाक से उस राजा का एक अन्य मंत्री ही बहुत बेईमान था। उसने बेईमानी से काफी धन कमाया था, किन्तु विभिन्न किस्म के दबावों के चलते वह उसे हटा नहीं पा रहा था। राजा ने उस भ्रष्ट मंत्री को साधु के सामने पेश कर दिया। साधु ने भ्रष्ट मंत्री से पूछा, ‘मंत्रीजी, आपने बेईमानी से जो दो नम्बर की सम्पदा अर्जित की है, क्या आप स्वयं उसकी देखरेख करते हैं?’
जी नहीं, मेरा बचपन का एक मित्र है। बड़ा ईमानदार है। वही मेरे बेईमानी के पूरे कामकाज को सम्हालता है, उसी की सूझबूझ से मेरी सम्पदा फैलती चली जा रही है।मंत्री ने तुरन्त किन्तु संकोच के साथ उत्तर दिया। यह सुनते ही साधु ने राजा से कहा, ‘राजन, इस मंत्री के उस ईमानदार मित्र को बुलाइए और नि:संकोच मंत्रीपद सौंप दीजिए। और याद रखिए, भविष्य में जब भी ईमानदार आदमी की जरूरत पड़े, वह आपको किसी परम बेईमान के सहायक के रूप में काम करता मिल जाएगा।
बोध कथा समाप्त हुई। मैं सोचता हूं, सरकार मेरी सेवा का लाभ भले ही न ले, पर इस बोध कथा से तो सबक ले ही सकती है। सरकार के आसपास बेईमान तो भरे पड़े हैं।  रोमेश जोशी

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